पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हृदय रोग कम होते हैं। फिर भी, महिलाओं में मृत्यु का प्रमुख कारण हृदय रोग ही है।
महिलाओं में हार्ट अटैक के कारण क्या हैं और इसे कैसे रोका जा सकता है?
आमतौर पर महिलाएं मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति) तक हार्ट अटैक से सुरक्षित रहती हैं, लेकिन जब उन्हें डायबिटीज, थायरॉइड की समस्या होती है या परिवार में किसी को कम उम्र में हार्ट अटैक हुआ हो, तो यह सुरक्षा कम हो जाती है। महिलाओं को हृदय रोग की रोकथाम और इलाज की सलाह कम मिलती है।
महिलाएं अक्सर ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में पीछे रह जाती हैं। डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं में हार्ट अटैक से मृत्यु का जोखिम पुरुषों से अधिक होता है। इसलिए ऐसी महिलाओं को दवाइयाँ और लाइफस्टाइल में बदलाव गंभीरता से अपनाने चाहिए।
महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण क्या हैं?
1) सीने में दर्द:
सीने में दर्द हार्ट अटैक का सबसे आम लक्षण है। महिलाओं में यह दर्द ज्यादा तीव्र न होकर जकड़न, भारीपन या जलन के रूप में महसूस हो सकता है। कई महिलाएं सोचती हैं कि हार्ट अटैक सिर्फ तभी होता है जब दर्द बहुत ज्यादा हो, लेकिन यह गलत है। अधिकांश मामलों में हल्का दर्द या अन्य लक्षण भी हो सकते हैं।
2) हार्ट अटैक के अन्य लक्षण:
- जबड़े या गले में दर्द
- अपच या भारीपन
- असामान्य थकान
- चलने या आराम करते समय नई सांस की तकलीफ
इन लक्षणों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है क्योंकि यह बहुत सामान्य लगते हैं।
एक और आम समस्या यह होती है कि महिलाओं में बड़ी नसों की बजाय छोटी नसों में ब्लॉकेज होती है। ऐसी स्थिति में सर्जरी या स्टेंटिंग नहीं की जा सकती, सिर्फ दवाओं से इलाज होता है।
हार्ट अटैक के बाद अस्पताल पहुंचने में देरी के कारण:
- महिलाएं अपनी शिकायतों को नजरअंदाज करती हैं
- लगता है परिवार वालों को डिस्टर्ब करेंगी
- समय ठीक नहीं होता
- परिवार के सदस्य गंभीरता से नहीं लेते
- अस्पताल की दूरी
- ट्रैफिक के कारण देरी
इलाज का सबसे ज्यादा लाभ तब होता है जब मरीज 12 घंटे के अंदर अस्पताल पहुंच जाए। इसके बाद नुकसान बढ़ता जाता है। 12 घंटे के बाद हृदय का 90% हिस्सा स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है।
महिलाओं में हार्ट अटैक के जोखिम कारक:
महिलाओं में कुछ विशेष जोखिम कारक होते हैं जो पुरुषों में नहीं होते:
आम जोखिम कारक: डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल, शारीरिक गतिविधि की कमी, तनाव
विशेष जोखिम कारक:
- एंडोमेट्रियोसिस
- पीसीओडी (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज)
- गर्भावस्था में डायबिटीज और हाई बीपी
- गर्भावस्था के दौरान हृदय की नसों में फटाव के कारण हार्ट अटैक
अन्य हृदय रोग जो केवल महिलाओं में होते हैं:
गर्भावस्था के दौरान और बाद में हृदय की विफलता:
यह स्थिति Peripartum cardiomyopathy कहलाती है, जो गर्भावस्था के अंतिम हफ्तों में या डिलीवरी के कुछ महीनों बाद हो सकती है। इसमें हृदय की पंपिंग क्षमता घट जाती है और सांस लेने में दिक्कत होती है। ऐसे मरीजों को कार्डियोलॉजिस्ट की गहन निगरानी में रखना चाहिए। अधिकांश महिलाएं ठीक हो जाती हैं, लेकिन अगली गर्भावस्था से बचने की सलाह दी जाती है।
गर्भावस्था के दौरान हाई बीपी:
कुछ महिलाएं गर्भावस्था के 5वें महीने के बाद हाई बीपी की शिकार हो जाती हैं, जो काफी खतरनाक हो सकता है। इसलिए बीपी को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है।
ऑटोइम्यून बीमारियां:
SLE, Rheumatoid arthritis जैसी बीमारियां महिलाओं में आम हैं और ये हार्ट अटैक व ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ाती हैं।
निष्कर्ष:
महिलाओं में हृदय रोग अक्सर अनदेखा या गलत निदान का शिकार हो जाते हैं। इसलिए हृदय रोग की रोकथाम के लिए डायबिटीज, हाई बीपी और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करना जरूरी है। महिलाओं को नियमित व्यायाम, वजन नियंत्रण और स्वस्थ जीवनशैली के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
