हर साल हाई बीपी की वजह से 90 लाख से ज़्यादा मौतें होती हैं, जो तंबाकू सेवन से होने वाली लगभग 80 लाख मौतों से भी ज़्यादा है।
हाई बीपी तब ज़्यादा खतरनाक होता है जब उसे लंबे समय तक कंट्रोल न किया जाए। बीपी में हल्का उतार-चढ़ाव आमतौर पर नुकसान नहीं करता। ऐसा उतार-चढ़ाव तनाव, कॉफी पीने, पेशाब या स्टूल पास करने से पहले, और घबराहट की स्थिति में होता है। नींद के समय बीपी का लगभग 10–15 mmHg तक गिरना सामान्य है।
बार-बार बीपी चेक करना और हल्के बदलावों को लेकर घबराना ठीक नहीं। बीपी मापना डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए क्योंकि हर मरीज की स्थिति अलग होती है और ट्रीटमेंट का तरीका भी।
24 घंटे का बीपी मॉनिटरिंग क्या है?
24 घंटे तक व्यक्ति की बीपी को लगातार मॉनिटर करना (जागने और सोने के समय दोनों में), उसकी सामान्य दिनचर्या के दौरान, 24 घंटे की बीपी मॉनिटरिंग कहलाती है।
इस मॉनिटरिंग से यह पता चलता है कि नींद के दौरान बीपी सामान्य रूप से गिर रहा है, बहुत ज़्यादा गिर रहा है या उल्टा बढ़ रहा है। यह जानकारी डॉक्टर को दवाओं की डोज़ सही करने में बहुत मदद करती है।
जिन लोगों में रात में बीपी नहीं गिरता या बढ़ता है, उन्हें हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक या मृत्यु का खतरा ज़्यादा होता है, खासकर हाईपरटेंशन वालों में।
डायबिटीज़, खर्राटे और किडनी फेल्योर वाले मरीजों में रात में बीपी ज़्यादा बढ़ने की संभावना होती है।
सुबह के समय बीपी बढ़ना आम बात है, खासकर सर्दियों में और स्मोकर्स में। यही वजह है कि सुबह हार्ट अटैक की घटनाएं ज़्यादा होती हैं।
24 घंटे का बीपी मॉनिटर कैसे काम करता है?
यह एक छोटा सा डिवाइस होता है जो मरीज के नॉन–डॉमिनेंट हाथ (दाएं हाथ से काम करने वालों के लिए बायां हाथ) पर बांधा जाता है। हर 30 मिनट में यह खुद ही फुलता है और बीपी रिकॉर्ड करता है।
यह दिन में कम से कम 21 और रात में 7 बार बीपी मापता है। 24 घंटे तक यह कफ हाथ से नहीं हटाना चाहिए। फुलते समय थोड़ी परेशानी हो सकती है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं।
24 घंटे बाद मरीज वापस आता है, डाटा डाउनलोड होता है और उसका विश्लेषण किया जाता है। इसमें शामिल होता है –
- 24 घंटे का औसत बीपी
- दिन का औसत बीपी
- रात का औसत बीपी
- रात में बीपी में गिरावट का प्रतिशत
24 घंटे की AMBP के दौरान क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
- भारी व्यायाम न करें
- नहाना अवॉइड करें
- कफ बिल्कुल न हटाएँ
- रोज़मर्रा की गतिविधियाँ जारी रखें
- जब कफ मापने लगे तो बैठ जाएँ और न चलें न बोलें
- कोई भी जरूरी एक्टिविटी जैसे कॉफी पीना, गेम शो देखना, ऑफिस टाइम, सोने का समय – इनको नोटबुक में लिखें ताकि बीपी चेंज को समझा जा सके
24 घंटे की बीपी मॉनिटरिंग क्यों ज़रूरी है?
इससे हाई बीपी के अलग-अलग प्रकारों को पहचाना जा सकता है। यह सही दवा तय करने, इलाज की प्रतिक्रिया को देखने, ट्रीटमेंट में नाकामी का कारण जानने और डोज़ एडजस्ट करने में बहुत मददगार होता है।
कौन लोग इससे लाभ उठा सकते हैं?
- व्हाइट कोट हाईपरटेंशन
इसमें मरीज का बीपी हॉस्पिटल में हाई होता है लेकिन घर पर दिन और रात दोनों में नॉर्मल होता है। - मास्क्ड हाईपरटेंशन
इसमें क्लिनिक में बीपी नॉर्मल होता है लेकिन घर पर दिन और रात में बीपी हाई होता है। - नॉक्चर्नल हाईपरटेंशन
नींद के दौरान बीपी गिरने की बजाय बढ़ता है। ऐसे लोगों को हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक और किडनी फेल्योर का खतरा ज़्यादा होता है। - अर्ली मॉर्निंग हाईपरटेंशन
सुबह के समय हार्मोनल बदलावों के कारण बीपी में अचानक उछाल आता है। यही कारण है कि सुबह हार्ट अटैक ज़्यादा होते हैं। - रेजिस्टेंट हाईपरटेंशन
कुछ लोग 3 बीपी की दवाएं लेने के बावजूद कंट्रोल नहीं होते। ऐसे में दवाएं बढ़ाने से पहले 24 घंटे की मॉनिटरिंग से कन्फर्म करना ज़रूरी है। - प्रेगनेंसी के दौरान
प्रेगनेंसी में बीपी कंट्रोल करना मुश्किल हो सकता है। 24 घंटे की बीपी मॉनिटरिंग से प्रेगनेंसी में हाई बीपी से होने वाली जटिलताओं से बचा जा सकता है।
बीपी को अच्छे से कंट्रोल में रखना एक स्वस्थ दिल, किडनी और अच्छी लाइफ क्वालिटी के लिए ज़रूरी है।
मरीज की बीपी पैटर्न को समझने, सही दवा शुरू करने, इलाज की प्रतिक्रिया को मॉनिटर करने और दवा की डोज़ तय करने से पहले 24 घंटे की बीपी मॉनिटरिंग करना एक बहुत ज़रूरी स्टेप है।
